Wednesday 15 June 2011

... बारिश में चीखती बूँदें

सड़क पर बड़ी-बड़ी गाड़ियों से बाहर निकले हाथ... कमसिन बूंदों और अल्हड हवाओं को महसूस कर रहे थे. कुछ बदन सीधे ही इन आसमानी अहसासों से लरज रहे थे. कोई हाथों में हाथ थामे... बरसती बूंदों में अपने प्यार को सींच रहा था, तो दोपहिया पर कोई युगल... वृक्ष और लता सा अपने स्वाभाविक गंतव्य की ओर रवाना था. 
हर ओर युवोत्सव ही नहीं था. बच्चे बस्तों को छाता बनाये कीचड में ही दौड़ रहे थे, तो कोई बाबू अपनी फाइल को सर पर रख तेज क़दमों से चल रहा था. सब्जीवालों का कुछ नहीं, पर उनके ठेलों से लौटती महिलाओं को रिक्शा या फिर सुरक्षित राह की तलाश में मशक्कत करनी पड़ रही थी. कुछ ऐसे भी थे जो गाड़ियों से उड़ते कीचड को परास्त करने में ही अपना सारा कौशल खर्च कर रहे थे. 
सड़क के एक मोड़ पर अस्थायी से टेंट में कुछ ज्यादा ही हलचल थी. एक महिला अपने बच्चे को गोद में उठाये सामानों की उठा-पटक में व्यस्त थी. बच्चा रो रहा था.. पर माँ को किसी और बात की फिक्र थी. जहाँ सामान रखती, वहीं पानी टपकने लगता. बीच-बीच में आसमान पर भी नजर डाल रही थी और आसमान उसकी मुश्किलों की तरह उमड़ता जा रहा था. ना जाने सड़क किनारे के उस टेंट में क्या खजाना था?
महिला के भागीरथ प्रयास जारी थे और उसके बच्चे का रोना भी..अचानक उसके हाथ से मिटटी का बर्तन गिर गया. उसमें रखे सूखे चावल अब कीचड में लथपथ थे.
माँ चुपचाप बेटे को लेकर बैठ गई. हलचल बंद थी और बच्चे का रोना भी, क्योंकि माँ ने बच्चे को अपने आँचल में छिपा लिया था. अब वो जलती हुई आँखों से बरसती बूंदों में बौराई दुनिया को देख रही थी. उसके कानों में कोई जलतरंग नहीं बज रही थी और ना ही हवाएं उसको शरीर को झुरझुरा रही थीं. हाँ.. उसकी आँखों में जमा बूँदें चीख रही थीं.. वो बेबसी की चीख थी.

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