४ जून की मध्यरात्रि में सरकार सोते हुए सन्यासियों पर डंडे बरसाने लगी... दमन का ये दर्पण अगले पूरे दिन देश में जनता की वो औकात दिखता रहा, जो उसने बैलेट पर गलत ठप्पा लगते-लगाते किस्मत पर चस्पा कर ली है. इस दबंगई के दंश से तिलमिलाए सत्य सारथियों को आग्रह आक्रोश में बदलना पडा. अब रालेगन सिद्धि के सत्याग्रही ने... आजाद और बिस्मिल सरीखे तेवर में दूसरे इन्कलाब का ऐलान किया है. ये ऐलान कबूलनामा है इस बात का कि हम गुलाम हैं. पेंशन और न्याय के लिए संवैधानिक संस्थानों के चक्कर लगाते आम इंसान को ये गुलामी महसूस होती है. उस किसान का परिवार भी ये कटु सत्य भोगता है, जिसने सरकार को तबाह हो चुकी खेती का सबूत देने के लिए ख़ुदकुशी कर ली.. वो माँ तो और भी मजबूर है जिसकी गोद में दुधमुंहा बिलखता है, पर भूख की आग ने दूध ही सुखा दिया है.
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