Tuesday 22 September 2015

कभी यूँ भी हमसे रूबरू कलाम करो
बैठो ठहर के पहलू में और शाम करो
मिलने दो धड़कने धड़कन से नजर नजरों से
उठा दो पलकें और शराबों को नाकाम करो...

Wednesday 12 March 2014

.... जनता चूल्हे भाड़

नेता पहुंचे द्वार पर और करन लगे मनुहार
हमका दे दो वोट और दो बनाय सरकार

घर-घर पहुंची बिजली-पानी,फैक्ट्री लागी चार
बरसे लागी लक्ष्मी... फिर ले आयो मोटर कार

हुआं-हुआं.. भौं-भौं भाषण का, लेकिन यह है सार
नेता जी संसद पहुंचेंगे और जनता चूल्हे भाड़
(मलंग)

 
शुरुआती दिनों के सहकर्मी मंसूर भाई के कार्टून संकलन का पहला बाउंसर झेला.. जो महसूस हुआ वो अपने अंदाज में बयां कर रहा हूं.. (मलंग)

बाउंसर आई बल्ला गिर गया, हुआ खिलाड़ी ढेर
आड़ी तिरछी रेखाओं में उलझे सारे 'शेर'

बब्बर शेर दहाड़े और जनता चिंघाड़े
सच्चाई की स्याही में रंगते वादे नारे

गांधी टोपी.. खद्दर कुर्ता आज बने कार्टून
सबकी खींची टांग जिन्होंने चूसा खून

नेता संत क्रिकेटर की है खूब उड़ाई खिल्ली
दूसरा 'बाउंसर' डालो भैय्या और बिखराओ गिल्ली

Thursday 6 March 2014

रंगरेज कहाँ.... वो रंग !!


मलय बहे नवगंधा लेकर
हो अधर उदित मकरंद

तरुणाई का स्वाद चख रहे
भ्रमर गा रहे छंद....

मदन करे रति से मनमानी
राधा नाचे मोहन संग.....

काली लट टेसू रस भीगी
मांगे मिलन घड़ी बिरहन

सादी चूनर हो सतरंगी
रंगरेज कहाँ.... वो रंग  !!

चला अबीर आशाएं लेकर
इत उत फिरे गुलाल मलंग




हवा जिसके परों से आज भी टकरा रही है



जिंदगी मेरे सामने मुस्कुरा रही है
अपनी अल्हड़ अदा में आज वो इतरा रही है

जुल्फ काली घटना लब उसके आफताब हुए
वो उतरी बादलों से ख्वाहिशें जगा रही है

सोचता हूं उसके सपनों में अपने रंग भरूं
अपने होठों से जो मुझे गुनगुना रही है

उसकी आंखों में अपना अक्स नजर आता है
जिसकी सूरत मेरे दिल में उतरती जा रही है

क्या करूं किससे कहूं, कुछ समझ नहीं आता
मेरी ही आग मेरी रूह को झुलसा रही है

मैं वो पंछी जिसे पिंजरे में कैद रखा है
हवा जिसके परों से आज भी टकरा रही है

Friday 21 February 2014

आग से खेले गर आशिक़ तो फिर सजा क्या है


ए जिन्दगी तेरी रजा क्या है
मुश्किलों में निखरती हो तुम वजह क्या है

तेरा हर रंग नई जंग का पैगाम बना
ये हर कदम पे आजमाने की अदा क्या है

किसी को तख्त और किसी को गुलिस्तां मिला
मैं कांटों में मुस्कराऊं तो खता क्या है

तू बहकती है दहकती है शरारों की तरह
आग से खेले गर आशिक़ तो फिर सजा क्या है

ये मोहब्बत है बच्चों का कोई खेल नहीं
जान पर जब तलक न आए तो फिर मजा क्या है

अलसाई ख्वाहिशें अब ले रहीं अंगड़ाई है...
चलो 'मलंग' क्यों रुके हो अब माजरा क्या है

तू साजन मेरा सांवरिया..मीरा तेरी दीवानी है

(PHOTO CREDIT-monika-sharma / fineartamerica.com )
तू न जाने तू न माने .. मेरी तुझसे जुडी जिंदगानी है
तेरे अंग से अंग लगूँ न, तब तक ये अधूरी जवानी है

तू प्यासा भंवरा हरजाई .... काहे तुझसे आँख लड़ाई
दिन गुजरा बिरहा में तेरी अब रातें तेरी महकानी हैं

बहती हवा तू हाथ न आये आँचल छेड़े जुल्फ उड़ाये
तू साजन मेरा सांवरिया..मीरा तेरी दीवानी है

रे मलंग मोहे अंग बसा ले .. मेरे आँगन धुनी रमा ले
मैं तेरी जोगन बन जाऊं ,, अब तुझसे प्रीत निभानी है