Saturday 24 November 2012

तलाश की जाए


चलो फिर सुबह तलाश की जाए
बड़ी अंधेरी बस्ती है..उजास की जाए

परिंदे अपने घौंसलों में चुपचाप से हैं
उड़ें जो वो तो उनसे भी आस की जाए

है लंबा रास्ता कुछ मुश्किलें भी आएंगी
कुछ हम चलें कुछ फरियाद भी की जाए

जो डर समेट रखा है दिलों में बरसों से
उसको दिल छोड़ देने की मियाद दी जाए



Friday 31 August 2012

जाने दो दिल की हैं बातें... इनमें कुछ ख़ास नहीं



क्या करूं बात के बातों में अब वो बात नहीं
बहुत कुछ कहना था पर.. अब सही हालात नहीं

तुम भी आजाद अब, मैं भी सफर पे निकला हूं
ये कमी और के .. हाथों में तेरा हाथ नहीं

ख़ैर तुम क्यों हो परेशां... मैं भी क्यों फ़िक्र करूं
जाने दो दिल की हैं बातें... इनमें कुछ ख़ास नहीं

Tuesday 10 July 2012

प्याले में थोड़ी शराब थी, कुछ ग़म था.. वो भी मिला दिया


यूँ ही बैठे बैठे खबर हुई.. जो मेरा था आज रहा नहीं
रौशनी का चिराग था.. एक झोंके ने उसको बुझा दिया

ये पता था के ताउम्र अब नजरें नहीं टकराएंगी
एक अश्क का सैलाब था.. उसे बारिशों ने छिपा दिया

नींदों में आने लगे थे जो वो ख्वाब भी थे जुदा जुदा 
पलंग पे तेरा लिहाफ था.. मैंने जागने पे जला दिया 

कसक उठी जिगर में यूँ.. के धडकनों पे असर हुआ 
प्याले में थोड़ी  शराब थी, कुछ ग़म था.. वो भी मिला दिया 

यूं ही.. कुछ

बादलों से बूंदों को टप-टप ढहने दो.. जरा सी धूप आसमां में अभी रहने दो
बड़ी चुपचाप सी लगती है बिन तेरे ये झड़ी, बारिशों में अपनी खुशबुओं को बहने दो

Friday 13 April 2012

' है बदन जहाँ पे दफ़न मेरा, उस नींव को मेहराब दे '



नज़र से नज़र नवाज़ दे 
अब दीद का मेहताब दे 
सदियों से जो बेनूर हैं 
उन्हें नींद दे, कुछ ख्व़ाब दे 

मैं सफ़र में तन्हा उदास हूँ
मुझे हमसफ़र का ख़िताब दे
ये जो जिन्दगी ख़ामोश है 
इसे आज तू आवाज़ दे 

सीने में जिसको दफ़न करूँ
अपना कोई एक राज़ दे 
यूं सर्द सी साँसें पड़ीं  
अपने दहन से आग़ दे  

मैं मयकशी का शिकार हूँ
साकी मुझे अब आब दे 
है बदन जहाँ पे दफ़न मेरा
उस नींव को मेहराब दे 

Monday 13 February 2012

अपनी क़ातिल अदा पे .. रोज इतराती होगी

(painting author: Jacob Smit)

वो आज भी बिजली से... घबराती होगी
देख आईने में सूरत अपनी .. शर्माती होगी

लेके अल्हड़ सी अंगड़ाई .. बहक जाती होगी
कभी काली घनी जुल्फों में उलझ जाती होगी

उसकी बेबाक आदाओं से किसे प्यार नहीं
हर नजर उस पे जाके ठहर सी जाती होगी

देख के फिर किसी आशिक को बदहाल जिगर

अपनी क़ातिल अदा पे .. रोज इतराती होगी 

Saturday 4 February 2012

जाएंगे तो कुछ दर्द और ग़म साथ जाएंगे


साकी की पनाहों में तेरे ख्वाब बहक जाएंगे
भरेंगे रंग ख्यालों में.. गुलाबों सा महक जाएंगे 

होगा कभी तो इश्क .. कभी चाक जिगर भी
वो हुस्न भी होगा महज साँसों से दहक जाएंगे 

जो होंगे जख्म रूह पे मुहब्बत के कुछ हुजूर
गुनहगार भी होंगे तो जन्नत में बसर पाएंगे

आए थे खाली हाथ.....  बेपर्दा हयात में
जाएंगे तो कुछ दर्द और ग़म साथ जाएंगे



Wednesday 25 January 2012

किसी भूखे से भी वतन पे राय ली जाए


चलो इसकी आज तहकीकात की जाए
किसी भूखे से भी वतन पे बात की जाए

किसी शहीद की बेवा से ये सवाल करो
तेरे सिन्दूर की कीमत.. क्या अदा की जाए

पूछो दहशत में दौड़ते किसी बाशिंदे से
क्या वजह है जो हिफाजत तेरी करी जाए

जब हो गए गुलाम हम फरेब-झूठ के
बस नाम की आजादी किस के नाम की जाए









Monday 16 January 2012

मिलता है जहाँ सुकून.. वो घर अपना ना मिला


रात भर जागता रहा यूँ ही
मेरी आँखों को आज फिर कोई सपना न मिला

बिखर गए जो थे मेरे सभी रिश्ते नाते..
अलविदा कहने की खातिर कोई अपना ना मिला

थी मुझको भी जरूरत किसी पैगम्बर की
जाते-जाते करूं सजदा करम इतना ना मिला

दर-बदर फिरता हूँ गलियों में बन के बेगाना
है मिलता जहाँ सुकून.. वो घर अपना ना मिला








Friday 13 January 2012

फिर तुझ पे फ़ना होने को दिल चाहता है



सुनो कि आज कुछ कहने को दिल चाहता है 
ठहरा हुआ था कहीं... बहने को दिल चाहता है 

ये बात ठीक नहीं तुम दूर मुझे देखा करो   
आज तेरे पहलू में रहने को दिल चाहता है 

ये रोज रोज इस बाजार में बिकते अरमान   
अब तो खरीदार होने को दिल चाहता है 

चले भी आओ के जरा सी जान बाकी है 
फिर तुझ पे फ़ना होने को दिल चाहता है