Friday 21 February 2014

आग से खेले गर आशिक़ तो फिर सजा क्या है


ए जिन्दगी तेरी रजा क्या है
मुश्किलों में निखरती हो तुम वजह क्या है

तेरा हर रंग नई जंग का पैगाम बना
ये हर कदम पे आजमाने की अदा क्या है

किसी को तख्त और किसी को गुलिस्तां मिला
मैं कांटों में मुस्कराऊं तो खता क्या है

तू बहकती है दहकती है शरारों की तरह
आग से खेले गर आशिक़ तो फिर सजा क्या है

ये मोहब्बत है बच्चों का कोई खेल नहीं
जान पर जब तलक न आए तो फिर मजा क्या है

अलसाई ख्वाहिशें अब ले रहीं अंगड़ाई है...
चलो 'मलंग' क्यों रुके हो अब माजरा क्या है

तू साजन मेरा सांवरिया..मीरा तेरी दीवानी है

(PHOTO CREDIT-monika-sharma / fineartamerica.com )
तू न जाने तू न माने .. मेरी तुझसे जुडी जिंदगानी है
तेरे अंग से अंग लगूँ न, तब तक ये अधूरी जवानी है

तू प्यासा भंवरा हरजाई .... काहे तुझसे आँख लड़ाई
दिन गुजरा बिरहा में तेरी अब रातें तेरी महकानी हैं

बहती हवा तू हाथ न आये आँचल छेड़े जुल्फ उड़ाये
तू साजन मेरा सांवरिया..मीरा तेरी दीवानी है

रे मलंग मोहे अंग बसा ले .. मेरे आँगन धुनी रमा ले
मैं तेरी जोगन बन जाऊं ,, अब तुझसे प्रीत निभानी है
छुट्टियों पे गयी थीं , ये मुस्कुराहटें अभी अभी लौटी हैं
हैरान हो जिंदगी से पूछती हैं, बताओ मुश्कलें क्या होती हैं
सपने बड़े संजोये हैं मैंने ... रातें मेरी अब छोटी हैं
मिली जवानी तो मुहब्बत भी मिलेगी एक दिन
ख्वाहिशें बचपन की कुंवारी होती हैं