वो आ रही थी और मैं हमेशा की तरह केवल उसे ही देख रहा था.. अक्सर ऐसा ही होता था आस-पास की चीजें या तो उसमें खो जाती थीं या फिर उसका हिस्सा बन जाती थी. जैसे धूप उसके चेहरे में पनाह लेती थी और हवा उसके बालों से खेलने लगती थी..
बेफिक्री उसका सबसे बड़ा गहना थी , जिसे आज वो साथ नहीं लायी और इसीलिए मुझे सबकुछ दिखाई दे गया. जमीन पर फूंक-फूंक कर रखे गए कदम.. आस-पास के लोगों पर पड़ती सवालिया निगाहें और पूरे चेहरे पर उलझनों का जाल.
सामने बैठते ही उसने कहा कि काम ज्यादा है, सो ज्यादा देर रुक न पाउंगी. मुझे पता था कमी वक़्त की नहीं किसी और बात की है.. और वो बात अब नहीं रही. ये तो बस एक रिवाज अदा करना था... आख़िरी बार देखने या फिर कुछ कहने-सुनने का.
चीखते, रोते हुए कुछ खामोश लम्हों के बाद वो चली गई... कभी वापस ना आने के लिए. इतने सालों में पहली बार मैं बेफिक्र हुआ था.. इस बात से की अब कोई उसे मुझसे दूर नहीं कर सकता है.
बेफिक्री उसका सबसे बड़ा गहना थी , जिसे आज वो साथ नहीं लायी और इसीलिए मुझे सबकुछ दिखाई दे गया. जमीन पर फूंक-फूंक कर रखे गए कदम.. आस-पास के लोगों पर पड़ती सवालिया निगाहें और पूरे चेहरे पर उलझनों का जाल.
सामने बैठते ही उसने कहा कि काम ज्यादा है, सो ज्यादा देर रुक न पाउंगी. मुझे पता था कमी वक़्त की नहीं किसी और बात की है.. और वो बात अब नहीं रही. ये तो बस एक रिवाज अदा करना था... आख़िरी बार देखने या फिर कुछ कहने-सुनने का.
चीखते, रोते हुए कुछ खामोश लम्हों के बाद वो चली गई... कभी वापस ना आने के लिए. इतने सालों में पहली बार मैं बेफिक्र हुआ था.. इस बात से की अब कोई उसे मुझसे दूर नहीं कर सकता है.
अरसा गुजरने के बाद वो आज भी वैसे ही आती है.. और मुझे उसके अलावा कुछ नहीं दिखता, क्योंकि वो पहले की तरह ही बेफिक्र है..जैसे पहाड़ों से उतर रही हो. हर आमद पर मैं और मेरी कायनात उसमें ही समा जाती है..हमेशा.. हर बार