Saturday 4 June 2011

बारूद की दहशत से जूझती दुनिया

कभी आदमी की जरूरत थी.. धूल-धुएं के बीच दौड़ते-भागते रोजी-रोटी कमाना माना। आज बारूद और जले हुए लोथड़ों के बीच गुजर-बसर मजबूरी ही है। वजह आतंकवाद ... जो बीते दशकों में अच्छी तरह फूला फला और अब पितामह माने जाने वाले देश के लिए भी भस्मासुर बन चुका  है। विश्व इतिहास में सबसे लंबी तलाश के बाद आतंक का पर्याय ओसामा मारा गया। जानकार और खबरची बोलने लगे ‘आतंक अब बिन लादेन’। लेकिन , बूढ़े और किडनी कि समस्याओं से पीडि़त लादेन के विचार तब भी इंसानियत के लिए खतरा थे और अब भी... क्योंकि खात्मा लादेन का हुआ... उसके विचारों का नहीं। वैसे भी मानव इतिहास में अब तक विचारों के क़त्ल का कोई सबूत नहीं मिला है।
ओसामा भी अपने पीछे विचार छोड़ गया है। शर्मीला और तहजीब से रहने वाला तेज दिमाग ओबामा, जो वक्त के साथ-साथ दुनिया में आतंक की परिभाषा बन गया... ये जरूर जानता होगा कि हमेशा के लिए वो भी जिन्दा नहीं रहेगा। उसकी कातिल सेना के सेनापति अभी भी जिंदा हैं... मकसद भी जिंदा है...जाहिर तौर पर योजनाएं भी जिंदा होंगी.. दुनिया को दहशतजदा करने की। नतीजतन, आतंकवादियों की इस कुख्यात कातिल कौम के भी कई हिस्से हो गए हैं और उन्हें भी कई नाम मिल गए हैं...दुनिया के  आतंकी , अफगानिस्तान के आतंकी , कश्मीर के आतंकी और पाकिस्तान के आतंकी ..वगैरह-वगैरह। मकसद तो एक ही है इंसानियत को बारूद और कत्लेआम के जरिए दहशतजदा करना।
9/11 के हमले में 3000 लोगों का कातिल ओसामा दुनिया का सबसे नामुराद शख्स था और अचानक इंसानियत के रखवाले में तब्दील हो चुके अमेरिका का सबसे बड़ा दुश्मन। अमेरिका और यूएन के नेतृत्व में आतंकियों का दमन शुरू हो गया। ओबामा ने व्हाइट हाउस में कुनबा बसाने के बाद मुस्लिम राष्ट्रों को भी आतंक के खिलाफ लड़ाई में इंसानियत के साथ खड़ा होने के लिए प्रेरित किया। मिस्र यात्रा इसी सिलसिले में की गई थी। दुनिया के  एक होते ही हजारों आतंकी योद्धाओं का सेनापति कुछ ही सालों में 100-200 वफादारों के साथ छिपने के ठिकाने ढूंढता फिर रहा था। आखिरकार.. लाखों इनकारों के बावजूद उसका आखिरी ठिकाना पाकिस्तान में ही मिला... एबटाबाद में अमेरिकी सैनिकों ने उसे घर में घुसकर खत्म कर दिया। ये आतंक की कहानी का मध्यांतर था। ओसामा के बिना आतंक की कल्पना करना कुछ घंटों का सुकून तो ले आयी, लेकिन पडोसी के चेहरे से वो पर्दा उठ गया, जिसमें वो अपने देश के नासूर को दुनिया से छिपाए घूम रहा था. दुनिया ने देखा की किस तरह आतंक के भस्मासुर को पालने में पाक ने खुद के जिस्म को जार-जार कर लिया है। पखवाड़ेभर में बेगुनाह पाकिस्तानी नागरिकों और सैनिकों पर तालिबानियों के फिदायीन और अन्य प्रचलित आतंकी हमले शुरू हो गए। बेगुनाहों की जान लेने के साथ-साथ आतंकियों ने सैन्य ठिकानों को भी निशाना बनाना शुरू कर दिया। अब पकिस्तान के सामने हर वक़्त सहमा सहमा इन्तजार है अगले धमाके का, कभी इन धमाकों की बुनियाद को इस देश के हर रहनुमा ने देशभक्ति के नाम पर पूरी शिद्दत से सींचा था। इस देशभक्ति में पडोसी पर हर मुमकिन हमला करना भी शुमार था, जिसकी जिम्मेदारी को बेपरवाही से टाल जाना बीते दशकों में पाकिस्तान कि दिलकश अदा बन गई है। खैर ये और बात है कि हिंदुस्तान में कत्लेआम के जिम्मेदार कातिल अब सरेआम कबूल कर रहे है कि क़त्ल कि ये तालीम उन्हें पकिस्तान की सरजमीं पर मिली है।
दशकों से विश्वासघात कि ये दुश्वारियां झेल रहा आम आदमी रोज की धमकियों और विस्फोटों का आदी होता जा रहा है। प्रधानमंत्री विदेशी मित्रों के साथ मिलकर आतंक को सख्ती से नेस्तानूबूत करने की घोषणाएं करते हैं। दूसरी ओर, बर्फीली घाटियों से होता हुआ आंतक ये बारूद दिल्ली और ऐसे शहरों कि सड़कों पर बिछ गया है। रोजी-रोटी के लिए घर से निकलते मर्द के लिए पहले भी बीवियां प्रार्थनाएं करती थीं, लेकिन सकुशल लौटने को लेकर आशंका अब ज्यादा डराने लगी है... इसका भी कारण आतंकवाद ही है। संसद, हाईकोर्ट, रेलवे स्टेशन, फाइव स्टार होटल, बस स्टैंड कोई भी जगह सुरक्षित नहीं रही। खुफिया तंत्र अक्सर फेल ही हो जाता है और आतंक निरोधक दस्ते धमाकों के बाद ही पहुंचते हैं। भ्रष्टाचार, गरीबी, बेरोजगारी को खत्म करने में सरकारें गुजर रही हैं और पीढिय़ां भी। हुक्मरानों को इनसे तत्लकाल  निपटना होगा, ताकि बारूद से घुले इस माहौल में ये समस्याएं चिनगारी का काम न करें ।





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