Saturday 11 June 2011

मेरे गाँव के आसमान में खूब तारे हैं

नौकरी की जद्दोजहद और शहर की भागदौड़ में भी कभी-कभी ठेठ भारत से मुलाकात हो जाती है. मैं भी मिला था. मुलाकात का फासला २० सालों का रहा होगा, लेकिन बच्चों जैसी बातों ने ऐसा घोला कि आत्ममंथन हो गया.
मेरा साप्ताहिक अवकाश था और सुबह-सुबह सहयोगी का फोन आ गया. ऑफिस बुलाये जाने कि आशंका के साथ मैंने कॉल रिसीव कर ही ली.सहयोगी के हाय-हल्लो में अनुनय साफ़ झलक रही थी. फिर मुद्दे पे आये साथी ने कहा यार थोड़ी मदद चाहिए थी. मैंने निष्ठुरता से जवाब दिया ऑफिस आने और पैसे के अलावा जो कहे करूंगा! 
उसने कहा मेरे बेटे को ४ घंटे के लिए संभालना है. फिल्म देखने का प्रोग्राम है तेरी भाभी के साथ.. गाँव से आयी है यार जिद पकड़ ली है. मैं बोला बेटे को ले जा साथ में, दिक्कत क्या है? सहयोगी ने कहा वैसे तो वो भी गाँव में ही पढ़ रहा है, पर बहुत बड़ा सवाली है. मैं समझ गया कि आज की शाम का सत्यानाश तय है.तयशुदा वक़्त के साथ मैं शाम सात बजे पहुँच गया. सहयोगी तो इन्तजार में ही था, आते ही मूलभूत आवश्यकताओं की जानकारियां दे निकल लिया. 
बच्चे का नाम व्योम था. उम्र कोई १० साल. उसने आते ही पहला सवाल दागा आप क्या करते है. मैंने कहा अखबार छापता हूँ. व्योम बोला- मंगू चाचा कि तो खबर क्यों नहीं छापी? मैंने कहा उन्होंने ऐसा क्या कर दिया था? ब्योम बोला वो मर गए थे, बहुत दिनों से बीमार थे और गाँव में इलाज नहीं हो पाया.
दूर गाँव के अकेले मंगू की मौत की खबर पहली बार इतनी जरूरी जान पड़ी थी. व्योम का दूसरा सवाल तैयार था- पार्क ले चलेंगे क्या मुझे? इनकार करने कि हिम्मत नहीं थी और सोचा खेल-कूद में सवाल तो नहीं पूछेगा? पार्क पहुचे तो व्योम पास ही बैठ गया. मैंने पूछा खेलोगे नहीं? उसने कहा- बाकी और कोई बच्चा ही नहीं है! मैं बोला रात हो गई है, सब घर में ही होंगे. व्योम की बात में शिकायत थी.. दिन में भी तो नहीं थे? मैंने अंदाजा लगाया कि ट्यूशन पढ़ रहे होंगे! व्योम बोलते-बोलते सोचने लगा कि ये बच्चे खेलते कब हैं, हम तो रात में भी लुका-छिपी खेलते हैं. व्योम अनवरत जारी था. मैं निरुत्तर सा आसमान ताकने लगा. व्योम ने फिर पूछा क्या देख रहे हैं चन्दा मामा? नहीं तारों को.. मेरा अनिश्चित सा जवाब था. 
फिर सवाल आया- वो तो दिखाई नहीं देते? जवाब दिया कि पोल्यूशन ने निगल लिया है. 
अब व्योम उदास था, बच्चों के दर्द को बयाँ किया- इस जगह से अच्छा तो हमारा गाँव है, बच्चे खूब खेलते हैं, दिनभर हैंडपंप का पीनी पियो, नदी में नहाओ, पेड़ों पर चढो, खेतों में भागो, वहाँ मिटटी है, धुंआ नहीं. 
व्योम ने फिर कहा- और तो और हमारे गाँव के आसमान में तारे भी बहुत हैं. मेरा दिमाग बच्चे कि बात से शून्य हो गया.
इस बीच दोस्त फिल्म से वापस आ चुका था. मैंने व्योम को घर छोड़ा और वापस उसी पार्क में आकर बैठ गया. आसमान में सितारों को खोजता हुआ. चाँद और बादलों की सुन्दरता मेघदूत में दिए वर्णन से ज्यादा अद्भुत थी. १० मिनट में ये आसमान हजार शक्लें ले चुका था. बचपन में आसमान में हाथी, बाबा और पेड़ों को तलाशता था, आज 2० सालों बाद फिर वही काम कर रहा था. फिर अचानक आस-पास से गुजरती गाड़ियाँ और उनके हार्न ने मेरा बचपन मुझ से झपट लिया. ऐसा लगा जैसे ये रोशनी और आवाज आसमान को निगल रही हों. गौर से देखा, तो आसमान में तारे मुश्किल से नजर आ रहे थे.
आधुनिक और सुविधासंपन्न शहर में रहने वाला 'मैं नौकरीपेशा' आज बहुत कंगाली महसूस कर रहा था, क्योंकि मेरे मुठ्ठी भर आसमान में तारे भी नहीं थे.
गाँव जन्नत लग रहा था, क्योंकि व्योम के गाँव के आसमान में तारे बहुत हैं... और बीमारी से मरने वाले मंगू कि याद उसे आज भी है..





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