अंतस का आतुर नाद सुनो.. प्रलयंकर की पद चाप सुनो
अब प्रलय प्रहर आने को है... डमरू की डम-डम थाप सुनो
धरती घर-घर-घर डोल रही, समतल-पर्वत झकझोर रही
तुम प्रकृति सृजन के लिए प्रथम तांडव का मृत्यु निनाद सुनो
जब-जब असत्य पोषित होकर सच की मर्यादा हरता है
तब तिमिर दहन के हेतु सदा आंदोलित अग्नि उजास सुनो
जब हवन कुंड की बेदी पर साधू-संतों का रक्त बहे
तब संहारक का अट्टहास दश दिशा सुनो, दिन-रात सुनो
जब शांत सदाशिव होते हैं... मंदाकिनी झर-झर झरती है
तब अरुणोदय के साथ सहज जीवन का शाश्वत राग सुनो
अब धरा नवोदित रूप धरे मातृत्व मगन हो डोलेगी
सुजला सुफला की गोद बसे बालक का तुम आह्लाद सुनो