Monday 13 June 2011

"मलंग" यूं नहीं फिरते के खुदा मिल जाए

बता खुदा मैं क्या करूँ वो शब् एक बार आए,
थाम के बाँहों को पहलू में मेरा यार आए.
मैंने की है खता कहो तो सजा मौत मिले,
बस आरजू है यही के  उसको ऐतबार आए.


मुझे नहीं है यकीन अबतलक तन्हाई का,
मेरी हर याद में तेरी महक बेशुमार आए.
कभी यूं भी हुआ के दूर से तुमको देखा,
इन आँखों में अश्क-ऐ-बेबसी हजार आए.

हसीन ख्वाब देखने हैं बस तेरी खातिर,
एक उम्र बाद मैं सो जाऊं वो खुमार आए 
थाम ले रूह, कर ले कैद मुझे खुद में तू
"मलंग" यूं नहीं फिरते के खुदा मिल जाए.





1 comment:

  1. वाह रोहित सर, क्या बात है...

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