Saturday 22 October 2011
Tuesday 18 October 2011
Friday 7 October 2011
यूँ ही
सितारे झिलमिलाये मुस्कुराने से
जुगनुओं को प्यास है लगी जमाने से
कह दो चाँद से जरा संभल के चले
जुगनुओं को प्यास है लगी जमाने से
कह दो चाँद से जरा संभल के चले
चांदनी न छीन ले कोई बहाने से
Thursday 6 October 2011
न यूं सूखी-सूखी सी बरसात होती
कह देता तुमसे अगर पास होती, न यूं दिन गुजरते न यूं रात होती
बादल न बिजली, न दिलकश हवाएं, न यूं सूखी-सूखी सी बरसात होतीन यूं ओस की बूंद पत्तों पे पड़ती, न दिन चढ़ते-चढ़ते वो बर्बाद होती
अगर चाँद मेरा न यूं 'रंग' बदलता,मेरी रात में चांदनी साथ होती
जो लुटती न नींदें मेरी तेरी खातिर, मुझ पे भी ख्वाबों की बरसात होती
न तू देखती मुझ को उस दिन पलटकर,मेरी भी दुनिया मेरे पास होती
Sunday 2 October 2011
इस बार अंधेरों से कुछ हिसाब करेंगे
इस बार अंधेरों से कुछ हिसाब करेंगे
क्यों छाए हो इस दर पे सवालात करेंगे
बुझाओ चाहे लाख तुम चराग-ए-जिन्दगी
खुद को जला के घर को आफताब करेंगे
सेजों पे पड़ी सलवटें बन जाएंगी संगीन
लहू को उसकी मांग का खिताब करेंगे
हो जाएगी शगल ये शहादत की आरजू
हम मौत की घड़ी में यूं बरात करेंगे
ये हौसले की लौ कभी बुझने न पायेगी
हम इस कदर अपने लहू को आग करेंगे
Saturday 1 October 2011
लहरें और साहिल
लहरों से साहिलों का मेल.. ऐसे देखिए
इक की तलब अधूरी, तो एक टूटकर मिली
वो इन्तजार में था उम्रभर का तलबगार
वो इन्तजार में था उम्रभर का तलबगार
वो हुस्न के दरिया में सारी उम्र थी पली
करते रहे वो बंदगी खुदा की.. साथ-साथ
करते रहे वो बंदगी खुदा की.. साथ-साथ
एक बन गया सवाली एक मुराद बन चली
ये कायनात की थी करामात.. ओ हुजूर
ये कायनात की थी करामात.. ओ हुजूर
इबादत में बेवफाई की उनको सजा मिली
इनको था नाज हुस्न पर, उन्हें गुरूर-ए-आशिकी
इनको था नाज हुस्न पर, उन्हें गुरूर-ए-आशिकी
वफ़ा पे उठी निगाह तो फिर किसी की न चली
वो भटकी सारी उम्र और वो महज देखता रहा
.. उनको खुदा मिला न ही इनको दुआ मिली
मतवाले फिर से गीत शहादत के गुनगुनाएंगे
यूं तो मलंग हमेशा इक ख़याल नजर आएंगे,
पड़ी नजर तेरी तो हकीकत में संवर जाएंगे.
वैसे हमें दुनिया-जहां से है नहीं मतलब,
पर सोचते हैं जाएं तो कोहराम कर के जाएंगे.
ये भी अभी उम्मीद के बदलेगा कभी दौर,
न कुछ हुआ तो खून से तारीख लिख के जाएंगे.
कुछ यूं पिघल रही है जेहन में जमी ये आग,
अब राह इन्कलाब की फौलाद कर के जाएंगे.
फिर रोकने की करना चाहे लाख कोशिशें,
मतवाले फिर से गीत शहादत के गुनगुनाएंगे.
फिर होंगी बिखरी सूरतों पे मुस्कुराहटें,
दुनिया में फिर सुकून की महफ़िल सजाएंगे.
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