Tuesday 7 June 2011

चलो... जूतमपैजार की रसम तो पूरी हुई

इसी का तो इन्तजार था... आखिर बाबा रामदेव का महायज्ञ २०वीं शताब्दी में 'रामबाण' बन चुके 'जूते' की आहुति के बगैर कैसे पूरा हो सकता था. भला हो जनार्दन रेड्डी का... जिन्होंने गरमागरम माहौल में प्रेस कांफ्रेंस कर जूतमपैजार की रसम को आवश्यक मौक़ा मुहैया करवा दिया. इस बार जूता मारने के लिए शिक्षक सुनील कुमार यानी 'मारीचि' को 'नारद' का रूप धर पत्रकार सभा में शामिल होना पड़ा. किरदारों की उलटा पलटी पर गौर मत फरमाइए. आज के 'कलियुगीन' डेमोक्रेटिक इंडिया में इन 'सतयुगीनों'  को भी दलबदल की स्वतन्त्रता है. 
खैर... मारीचि का 'रामबाण'  इस बार प्रत्यंचा पर चढ़ा ही रह गया. दूरदर्शी खबरनवीसों ने धर लिया. पर जूते को 'रामबाण' की उपाधि यूं ही नहीं दी गई है. लगे या न लगे... 'पोलिटिकल करेक्टर' तो पैरों से उतरने के साथ ही 'ढीला' कर देता है.रसम पूरी हो गई. जूते के आभामंडल से जुडा हर चेहरा बुद्धू बक्से पर चमकता दिखाई दिया. महिमा ही निराली है... 'राइ को पर्वत करे और पर्वत राइ माहि'.
इस परम्परा के गौरवशाली इतिहास पर नजर डालें तो पाएंगे की पावर फुल देश के पावर फुल आदमी की भी उतर चुकी है. लेकिन, बुश भैया भी कमाल के थे दो-दो वार बचा गए... उनके देश की उन्नत रक्षा तकनीकों का असर रहा होगा. वेनजियाबाओ, पी चिदम्बरम, आडवाणी जी, स्वामी अग्निवेश, नवीन जिंदल जैसे कद्दावर भी आंशिक या पूर्णतया प्रभावित रहे हैं.
जूता चलना मतलब... किसी भी प्रयास के सफल या असफल होने की पक्की गारंटी. अब बाबा और सरकार के बीच कालेधन पर चल रहा मंथन कुछ न कुछ रत्न जरुर उगल देगा. हाँ मौके की नजाकत भांपते हुए वासुकी की पूँछ बीजेपी ने भी धर पकड़ी है... प्रमुख विपक्षी पार्टी अभी योगी के सहयोगी की भूमिका में है.
इस बीच लोगों का  उद्धार करने वाले जूते को अपने भविष्य की चिंता होने लगी है. शादियों में जीजा-साली की कमसिन लडाई के दौर से गुजरता, वो आज राजनीतिक गलियारों में उछल रहा है. जिसे देखो वही ताने खड़ा है. 
ये और बात है की चिरकाल से ही वो आदमी की औकात बताने वाला आइना रहा है... पर आजकल अपने बदले हुए जॉब प्रोफाइल में बेकदरी से बेचैन है. चैन-सुकून सब लुट जता है. जूतमपैजार की रसम अदायगी के बाद... न्यूज़ चैनल्स पर दिन-रात शोर मचता है... फलाने को फलाने ने जूता मारा..

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