Friday 10 June 2011

कसक: बस... मुलाक़ात की बात पर वो शरमा जातीं हैं


हमारे मित्र पांडे जी को इश्क हो गया है. इस इश्क में आदतन नमक मिर्च झोंकने से पहले कहानी के मुख्य पात्र की डीटेल्स प्रस्तुत कर रहा हूँ.
शादीशुदा पांडे जी को 'बगुला भगत' जानो,  'थल'- परियों के अनन्य प्रेमी. मुस्कुराहट और नजर के तीखे वारों को बचा पाने की फितरत नहीं है, घायल हो के ही दम लेते हैं... जब से हम जानते है, तब से इसी संक्रामक बीमारी के शिकार रहे हैं. गोपियाँ भी जानती हैं की जुबानी जमाखर्च से आगे बढना पांडे जी के बस की बात नहीं है, लिहाजा बेझिझक फायदा उठातीं हैं.
आधुनिकता के अंधड़ में भी पांडे जी जैसा जमीनी आदमी बच गया है. ३८ की उमर में एक सह्कर्मिनी की अनुकम्पा से चैटिंग और ई-मेल कला में निपुण हो रहे हैं. आजकल, कभी पांडे जी के चेहरे पर ख़ुशी रहती है... कभी अचानक मायूसी आ जाती है. राजनेताओं जैसी भावभंगिमा की वजह जानने के लिए हम उनके ऑफ़ का इन्तजार करते रहे. ऑफ के दिन भांग का अंटा लगाने के बाद पांडे जी... गहरी से गहरी बात पान की पीक के साथ उगल देते हैं. 
सभी की तनख्वाह हाल ही आयी थी. लिहाजा, दिन भी जल्दी-जल्दी गुजरे. पांडे जी का ऑफ़ भी आ गया. अंटा लगाने के बाद पान खाकर दार्शनिक अंदाज में सामने के नाले को निहारने लगे और बात की... सूचना क्रांति की. बोले- पंडित... देस बहुत तरक्की कर गया है. इन्टरनेट को ले लीजिये. बैठे हैं बनारस और 'चैटिया(चैटिंग)' रहे हैं... दिल्ली में. बोले-भैया हर मंत्री संतरी रोजे 'टूट-सूट (ट्वीट)' करते हैं, अपनी राय देते हैं, दूसरों की लेते हैं. अमां बड़े-बड़े सरकार हिलाऊ आन्दोलन हो जाते हैं और सड़क पर पत्ता नहीं खड़कता.
मैंने कहा बाबा रामदेव हरिद्वार से अस्पताल पहुँच चुके थे, अब क्या निकल ही लेते. आप भी... बोलते हो पत्ता नहीं खड़कता. 
पांडे जी टेढ़े हो गए... अमां वो तो दुनिया को दिखाने की चीज है, अस्पताल नहीं जायेंगे तो दुनिया जानेगी कैसे की वाकई अनशन पर हैं...सरकार और जनता तवज्जो कैसे देगी.
पांडे जी आगे बोले, भईया कुछ चीजें दबे-छुपे भी हो जाती हैं... कुछ बूझते  हो. किस्सा-ए-इश्क की पहली परत उघड़ रही थी. कहने लगे... अबे कोई झन्नाट आइटम नहीं मिला क्या? दिनभर तो इंटरनेट पर घुसे रहते हो. पांडे जी तन गए- हम तो आज-कल खूब बतिया रहे हैं इंटरनेट पर, हमारी बातों पर तो आजकल दर्जनों लड़कियां मरी जाती हैं.
मैंने कहा-ऐसा क्या कह दिया... अमर सिंह तो नहीं बन गए थे. पांडे जी बोले- अबे खाली बतियाना थोड़े ही है... बाकायदा इश्क की गाडी हांकेंगे. मैंने कहा- भाभी का क्या होगा? बोले- मंहगाई की मार है.. बेचारी सब्जी, दाल, चावल के हिसाब में ही महीना गुजार देती है.
मैंने कहा- अपनी प्रेमिकाओं में एकाध का नाम तो बताइए. पांडे जी चहक कर बोले हनी ००१ है, स्वीटी२७ है, मून८३ है. बहुत हैं यार... ऐसे ही समझे हो क्या? 
मैंने कहा- पांडे जी लडकियां हैं, या खगोलविदों के ढूंढी हुईं आकाशगंगाओं के नाम. पांडे जी का मुंह लाल हो गया, कहने लगे- अरे चाँद तो हम ही हैं न. उत्साह से बोले- दिन में दस लड़कियों की तस्वीर आती है शादी के लिए.. हिरोईनी जैसी दिखती हैं और कहती हैं.."वी कैन मीट". 
मैं समझ गया दिनभर फ्री चाय के लिए गले पड़ी "मंजरियों" ने पांडे जी का अकाउंट शादी डाट कॉम पर बना दिया है और चैटिंग का चस्का लगा दिया है. मैंने पूछ ही लिया, तो भाभी जी से चोरी कर के ही मानेंगे? पांडे जी बोले- यार बर्स्कुलोनी, टाइगर वूड्स और शेन वार्ने क्या ऐसे ही तरक्की कर गए हैं. बहुत प्रेरणा की जरूरत होती है, ऐसे ही तो मिलती है!
मैंने पूछा अब क्या? पांडे जी बोले- यार मुलाक़ात हो तो बात आगे बढे, परेशानी ये है की मिलने का वक़्त-जगह की बात करो तो शर्मा जाती हैं... हरी बत्तियां बुझाकर (लॉग आउट ) भाग जाती हैं. पांडे जी ने ताल ठोंकी और कहा-कब तक भागेंगी, कभी तो मेरी तमन्ना उन्हें खींच लायेगी... और फिर पांडे जी ने गहरी साँस लेते-लेते ग़ालिब को याद किया -
" आशिकी सब्र तलब और तमन्ना बेताब, दिल का क्या रंग करूँ खून-ए-जिगर होने तक.
हमने माना की तगफ्फुल(इनकार) ना करोगे लेकिन, ख़ाक हो जायेंगे हम तुम को खबर होने तक"

तमाशबीन 'ऑफिस वालों-वालियों' की लगाईं इस आग में जलते और वर्चुअल सुंदरियों के पीछे पागल हो चुके पांडे जी के सुधरने के मुश्किल हालात देखे, तो मैंने पांडे जी के लिए दुआ के रूप में बशीर साहब की कुछ लाइनें बुदबुदा दीं-

"खुश रहे या बहुत उदास रहे, जिन्दगी तेरे आस-पास रहे 
चाँद इन बदलियों से निकलेगा, कोई आयेगा दिल को आस रहे."


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