malang.rohitashwa
कलम सदा सौदामिनी दमके आखर नाद मृदंग, रे 'मलंग' लेखनि हो जैसे उच्छल जलधि तरंग
Tuesday 22 September 2015
कभी यूँ भी हमसे रूबरू कलाम करो
बैठो ठहर के पहलू में और शाम करो
मिलने दो धड़कने धड़कन से नजर नजरों से
उठा दो पलकें और शराबों को नाकाम करो
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