Sunday 5 June 2011

ये यंग मेन इतना एंग्री क्यों है

हाल ही में कुछ ख़बरें अख़बारों के पहले पन्ने पर दिखाई दीं. ख़बरें क्या थीं... समाज में पनप रहे कैंसर की नयी प्रजाति का संकेत थीं. भोपाल के एक किशोरवय ने अपनी माँ और बहन को क़त्ल कर दिया था. दिल्ली का एक युवक अपने कथित बहनोई के माँ-बाप का हत्यारा बना घूम रहा था. और समाज से सरोकार रखने वालों का सर घूम रहा था सोचकर कर की ये यंग मेन इतना एंग्री क्यों है. 
भोपाल के जिस युवक ने अपनी माँ और बहन को हलाक किया, वो परीक्षा में फेल हो गया था. माँ बहन ने उसे डांटा भी था, उनकी गैरमौजूदगी में घर पर गर्ल फ्रेंड को घर पर लाने के लिए ... इतनी सी बात में न जाने क्या शैतानियत भर गई उसके दिल दिमाग में... शातिर अपराधी की तरह क़त्ल को अंजाम दे डाला. साथ देने वाला भी यंग मेन था. दोस्त को रोका नहीं साथ देने चल दिया. दिल्ली के दुर्गेश का किस्सा भी यूँ ही था. बहन ने प्रेमी के साथ गुजर बसर शुरू कर दी थी. बात नागवार गुजरी तो रिश्ते में बहनोई बन चुके युवक के माँ-बाप को गोलियों से भून दिया. 
दोनों ही मामलों की तह में जाने पर पता चला की गुस्सा असफलता का था. एक को एक्जाम में फेल होने का और एक को बेरोजगारी और युवा समाज में अपमान का. पर ये गुस्सा महज इन बातों से ही नहीं बिगड़ा था.
इस कातिल गुस्से के पीछे के कारण विस्तृत है. मनोविज्ञानियों के मुताबिक गरीबी और बेरोजगारी के इतर युवाओं का एकांकीपन, अभिभावकों से बढती दूरी, छोटी असफलताओं पर आवश्यक सहयोग की जगह कॉम्पिटिशन की उलाहना, ऐश्वर्य की अभिलाषा आदि भी उनके जीवन पर गहरा असर डाल रही है. अगर ये कहा जाये की अज्ञान, अभाव और आवेश इस यंग मेन को इतना एंग्री बना रहा है...तो गलत न होगा. 
उदाहरण के लिए पटियाला को ले लीजिये. देश का एक विकसित शहर, जिले में बसने वालों की तादात १८ लाख है, युवा बहुसंख्यक हैं. यहाँ के एसपी सिटी नरिंदर कौशल ने कहा की रोजगार कार्यालय के अनुसार जिले में ३४,००० युवा बेरोजगार हैं.और ये बड़ी तेजी से बढ़ रहे हैं. बीते वर्षों में जो अपराधी कौशल के हत्थे चढ़े उनमे २०-३५ वर्ष के ज्यादा हैं. कौशल बतातें हैं की गरीब ही नहीं... रईसजादे भी अपराध के दलदल में हैं. गरीबों को गरीबी और बेरोजगारी, तो जरूरतें और नशे की आदतें रइसजादों को अपराधियों की जमात का हिस्सा बना रही है. 
एक और जिक्र जरूरी है. काश्मीर के उत्तरी इलाके से तीन आतंकवादियों को पकड़ा गया. इनके पास हथियार तो ख़ास नहीं थे, हाँ नशे की खेप बहुत बड़ी थी.पता चला की मुख्यधारा में शामिल होने के साथ ही इनका मकसद युवाओं को नशे का आदी बनाना था, ताकि उनका उपयोग बाद में मनमाने तरीके से किया जाये. जम्मू-कश्मीर ही नहीं हरियाणा, हिमाचल, दिल्ली, राजस्थान, पंजाब के युवा बड़ी तादात में इनकी गिरफ्त में हैं. इनमे गरीब हैं , अमीर हैं, शिक्षित भी हैं और बेरोजगार भी.. जाहिर तौर पर नशे की लिए सभी आसान शिकार हैं. 
दिल्ली की बात करें, तो आतंकियों की धरपकड़ के अलावा पुलिस महकमे के पास और भी बड़ी जिम्मेदारियां हैं. दिल्ली पुलिस कमिश्नर बीके गुप्ता ने हाल ही में बताया की बच्चों खासतौर पर युवाओं में बढ़ रहे अपराध को लेकर महकमा बेहद सक्रिय है. गरीबी, नशे और बेरोजगारी की भंवर में फंसे युवाओं के लिए जीविकोपार्जन के उपायों, मनोविज्ञानिक सलाह और शिक्षा के उन्नत कार्यक्रम चलाये जायेंगे, ताकि उनका रुख अपराधों की और न हो.
अध्ययन के मुताबिक १५-२४ की उम्र के ९० प्रतिशत युवा गरीब देशों में रहते है. गरीबी और रोजगार की नाउम्मीदी इन जैसे युवाओं के लिए जीवन मरण का प्रश्न है, लिहाजा अपराध के दलदल में ये आसानी से फंस सकते हैं.  भारत के सन्दर्भ में देखें तो दुनिया का ६० प्रतिशत युवा वर्ग भारतीय है. गरीबी, बेरोजगारी की समस्याओं से वो भी जूझ रहे हैं.२००७ में मिले कुछ महत्वपूर्ण आकड़ों का जिक्र भयावह सच के साक्षात्कार के लिए जरूरी है, उस साल ३४,५२७ युवा अपराधियों को पूरे हिन्दुस्तान में पकड़ा गया, इनमें ३२,६७१ लड़के और १८६५ लड़कियां थीं. 
लब्बोलुआब ये... के जिस यंग मेन की ताकत से देश के दूरद्रष्टा २०२० तक सपनों के भारत को साकार करने की सोच रहे हैं... वो इन खतरनाक तथ्यों से अनजान तो न होंगे और देख कर अनदेखा करना... तात्कालिक कदम न उठाना... आत्मघाती आचरण ही कहा जाएगा. क्योंकि, २०२० तक देश चलने वालों को ४ करोड़ ७० लाख की तादात वाले उस 'युवा पावर हॉउस' को संचालित करना होगा, जो यंग मेन के एंग्री होने की वजह से फटा तो... विकास गाथा विनाश गाथा में तब्दील हो जायेगी... 

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