Monday 13 February 2012

अपनी क़ातिल अदा पे .. रोज इतराती होगी

(painting author: Jacob Smit)

वो आज भी बिजली से... घबराती होगी
देख आईने में सूरत अपनी .. शर्माती होगी

लेके अल्हड़ सी अंगड़ाई .. बहक जाती होगी
कभी काली घनी जुल्फों में उलझ जाती होगी

उसकी बेबाक आदाओं से किसे प्यार नहीं
हर नजर उस पे जाके ठहर सी जाती होगी

देख के फिर किसी आशिक को बदहाल जिगर

अपनी क़ातिल अदा पे .. रोज इतराती होगी 

Saturday 4 February 2012

जाएंगे तो कुछ दर्द और ग़म साथ जाएंगे


साकी की पनाहों में तेरे ख्वाब बहक जाएंगे
भरेंगे रंग ख्यालों में.. गुलाबों सा महक जाएंगे 

होगा कभी तो इश्क .. कभी चाक जिगर भी
वो हुस्न भी होगा महज साँसों से दहक जाएंगे 

जो होंगे जख्म रूह पे मुहब्बत के कुछ हुजूर
गुनहगार भी होंगे तो जन्नत में बसर पाएंगे

आए थे खाली हाथ.....  बेपर्दा हयात में
जाएंगे तो कुछ दर्द और ग़म साथ जाएंगे