Thursday 6 October 2011

न यूं सूखी-सूखी सी बरसात होती


कह देता तुमसे अगर पास होती, न यूं दिन गुजरते न यूं रात होती
बादल न बिजली, न दिलकश हवाएं, न यूं सूखी-सूखी सी बरसात होती

अगर बांटते साथ में हाल-ए-दिल हम,क्यों बेरुखाई से फिर बात होती
न यूं ओस की बूंद पत्तों पे पड़ती, न दिन चढ़ते-चढ़ते वो बर्बाद होती
 
हम-तुम जो होते डगर में मुसाफिर, तो मंजिल हमारी कहीं पास होती
अगर चाँद मेरा न यूं 'रंग' बदलता,मेरी रात में चांदनी साथ होती

जो लुटती न नींदें मेरी तेरी खातिर, मुझ पे भी ख्वाबों की बरसात होती
न तू देखती मुझ को उस दिन पलटकर,मेरी भी दुनिया मेरे पास होती 

 

2 comments:

  1. हम करते रह गए, इंतजार इज़हार-ए-मोहब्त का
    न तुमने कहा, न हम दे पाए पैगा़म हमारे इस दिल का,
    राह मे ही खो गया हमसफ़र हमारी मन्जिल का
    कांधा भी न मिल सका , ढोने को जनाज़ा इस टूटे दिल का
    और हम करते रह गए इंतज़ार इज़हार-ए-मोहब्त का....

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