कह देता तुमसे अगर पास होती, न यूं दिन गुजरते न यूं रात होती
बादल न बिजली, न दिलकश हवाएं, न यूं सूखी-सूखी सी बरसात होतीन यूं ओस की बूंद पत्तों पे पड़ती, न दिन चढ़ते-चढ़ते वो बर्बाद होती
अगर चाँद मेरा न यूं 'रंग' बदलता,मेरी रात में चांदनी साथ होती
जो लुटती न नींदें मेरी तेरी खातिर, मुझ पे भी ख्वाबों की बरसात होती
न तू देखती मुझ को उस दिन पलटकर,मेरी भी दुनिया मेरे पास होती
musafir hu yaaro................
ReplyDeleteहम करते रह गए, इंतजार इज़हार-ए-मोहब्त का
ReplyDeleteन तुमने कहा, न हम दे पाए पैगा़म हमारे इस दिल का,
राह मे ही खो गया हमसफ़र हमारी मन्जिल का
कांधा भी न मिल सका , ढोने को जनाज़ा इस टूटे दिल का
और हम करते रह गए इंतज़ार इज़हार-ए-मोहब्त का....