Saturday 1 October 2011

लहरें और साहिल


लहरों से साहिलों का मेल.. ऐसे देखिए
इक की तलब अधूरी, तो एक टूटकर मिली

वो इन्तजार में था उम्रभर का तलबगार
वो हुस्न के दरिया में सारी उम्र थी पली

करते रहे वो बंदगी खुदा की.. साथ-साथ
एक बन गया सवाली एक मुराद बन चली

ये कायनात की थी करामात.. ओ हुजूर
इबादत में बेवफाई की उनको सजा मिली

इनको था नाज हुस्न पर, उन्हें गुरूर-ए-आशिकी
वफ़ा पे उठी निगाह तो फिर किसी की न चली

वो भटकी सारी उम्र और वो महज देखता रहा
.. उनको खुदा मिला न ही इनको दुआ मिली

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