Saturday 1 October 2011

मतवाले फिर से गीत शहादत के गुनगुनाएंगे


यूं तो मलंग हमेशा इक ख़याल  नजर आएंगे,
पड़ी नजर तेरी तो हकीकत में संवर जाएंगे.

वैसे हमें दुनिया-जहां से है नहीं मतलब,
पर सोचते हैं जाएं तो कोहराम कर के जाएंगे.

ये भी अभी उम्मीद के बदलेगा कभी दौर,
न कुछ हुआ तो खून से तारीख लिख के जाएंगे.

कुछ यूं पिघल रही है जेहन में जमी ये आग,
अब राह इन्कलाब की फौलाद कर के जाएंगे.

फिर रोकने की करना चाहे लाख कोशिशें,
मतवाले फिर से गीत शहादत के गुनगुनाएंगे.

फिर होंगी बिखरी सूरतों पे मुस्कुराहटें,
दुनिया में फिर सुकून की महफ़िल सजाएंगे.

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