Friday, 11 November 2011

जो मय्यतों पे महफ़िलें सजाने लगे



मयखाने में जब से मतलबी आने लगे 
औरों के ग़मों पे जाम टकराने लगे

पीने पिलाने का यहाँ बदल गया दस्तूर 
प्याला हाथ में आते ही बहक जाने लगे 

शराबों पे अब उँगलियाँ उठाते हैं वो लोग  
जो आईने में अपने अक्स से कतराने लगे 

मुल्क को बसाने की बताते हैं तरकीब 
जो अब मय्यतों पे महफ़िलें सजाने लगे  

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