मयखाने में जब से मतलबी आने लगे
औरों के ग़मों पे जाम टकराने लगे
पीने पिलाने का यहाँ बदल गया दस्तूर
प्याला हाथ में आते ही बहक जाने लगे
शराबों पे अब उँगलियाँ उठाते हैं वो लोग
जो आईने में अपने अक्स से कतराने लगे
मुल्क को बसाने की बताते हैं तरकीब
जो अब मय्यतों पे महफ़िलें सजाने लगे
kya bat hai
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