Wednesday 9 November 2011

आंखें हो गईं खफा उस पर, जो मेहरबान थीं


पंखों में नयी जान थी, उसकी पहली उड़ान थी
अजब था गुलिस्तां,अपने रंगों से भी हैरान थी

तितली थी उसे हर फूल का रस चखना था 
यही कुदरत की रज़ा, उसकी पहचान थी 

ख़ता तो गुल की थी, वो बन गया आशिक़ 
उसी को क़ैद कर बैठा, जो उसकी जान थी 

सहम के हो गई बेरंग सी नाजुक तितली
आंखें हो गईं खफा उस पर, जो मेहरबान थीं

 



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