Tuesday, 15 November 2011

वरना करवाने इबादत सनम सारे आ गए




रंज में जो तेरी तस्वीर मिटाने मैं चला 
हया हुस्न और अदा.. मेरे आड़े आ गए 

जरा सा मुस्कुराया मैं तेरे जाने के बाद 
मेरा गम और बढ़ने जखम सारे आ गए 

बेखबर होने को हमने जरा सी मांगी शराब 
मुझको पी जाने की खातिर जहर सारे आ गए 

वफ़ा पे जिनकी हमें नाज था जमाने से 
मेरी हस्ती को मिटाने सनम सारे आ गए 

ये तो अच्छा हुआ मलंग बस आशिक निकले 
वरना करवाने इबादत.. खुदा सारे आ गए 

Sunday, 13 November 2011

ये राह कह न पाए ..तुम भी बेवफा निकले


बेसबब फिरते हैं हम कोई वजह नहीं 
ये आवारगी ही किसी काम की निकले 

यूं तो शहर पराया है अपना नहीं मलंग 
रुके हैं राह में कोई पहचान का निकले 

दौलतें गर लुट गयीं मुझको फिकर नहीं  
निकले तो कारवां ये जरा शान से निकले 

मंजिल मेरा मकसद नहीं चलना पसंद है
ये राह कह न पाए ..तुम भी बेवफा निकले 



Friday, 11 November 2011

जो मय्यतों पे महफ़िलें सजाने लगे



मयखाने में जब से मतलबी आने लगे 
औरों के ग़मों पे जाम टकराने लगे

पीने पिलाने का यहाँ बदल गया दस्तूर 
प्याला हाथ में आते ही बहक जाने लगे 

शराबों पे अब उँगलियाँ उठाते हैं वो लोग  
जो आईने में अपने अक्स से कतराने लगे 

मुल्क को बसाने की बताते हैं तरकीब 
जो अब मय्यतों पे महफ़िलें सजाने लगे  

Thursday, 10 November 2011

जाते हो जाओ मगर आखिरी सलाम करो


कभी यूं भी हमसे रूबरू कलाम करो
बैठो ठहर के पहलू में आज शाम करो

बहकता नहीं मैं ये असर नजर का है
अब बेवजह न तुम मुझे बदनाम करो

न मैं काबिल हूँ न साकी है मेहरबां मुझपे
खोल दो जुल्फ बारिशों को आज जाम करो

चलो बहुत हुआ मुझे ये समझाने का दौर
जाते हो जाओ मगर आखिरी सलाम करो



Wednesday, 9 November 2011

आंखें हो गईं खफा उस पर, जो मेहरबान थीं


पंखों में नयी जान थी, उसकी पहली उड़ान थी
अजब था गुलिस्तां,अपने रंगों से भी हैरान थी

तितली थी उसे हर फूल का रस चखना था 
यही कुदरत की रज़ा, उसकी पहचान थी 

ख़ता तो गुल की थी, वो बन गया आशिक़ 
उसी को क़ैद कर बैठा, जो उसकी जान थी 

सहम के हो गई बेरंग सी नाजुक तितली
आंखें हो गईं खफा उस पर, जो मेहरबान थीं