Tuesday 10 July 2012

यूं ही.. कुछ

बादलों से बूंदों को टप-टप ढहने दो.. जरा सी धूप आसमां में अभी रहने दो
बड़ी चुपचाप सी लगती है बिन तेरे ये झड़ी, बारिशों में अपनी खुशबुओं को बहने दो

2 comments:

  1. वो पहली -पहली प्यास लिखूँ या निश्छल पहला प्यार लिखूँ..
    सावन की बारिश मेँ भीगूँ या मैं आंखों की बरसात लिखूँ..
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    बहुत दिनों बाद आज मलंग अपने रंग में रंगा दिख रहा है... बरबस ही वह दिन याद आ गए जब हम आपके लिखे अल्फाजों को चुपके से बदल दिया करते थे...

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    1. प्रवीण जी, आपकी रचना बेहद कोमल और अद्भुत है.. मिट्टी पर पड़ी पानी की बूंदों से जो महक उठती है.. इस रचना में वही महक है..
      और आपके अल्फाज बदलने का किस्सा जब भी याद आता है... एक मुस्कुराहट चेहरे पर तैर जाती है.. :)

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