रात भर जागता रहा यूँ ही
मेरी आँखों को आज फिर कोई सपना न मिला
बिखर गए जो थे मेरे सभी रिश्ते नाते..
अलविदा कहने की खातिर कोई अपना ना मिला
थी मुझको भी जरूरत किसी पैगम्बर की
जाते-जाते करूं सजदा करम इतना ना मिला
दर-बदर फिरता हूँ गलियों में बन के बेगाना
है मिलता जहाँ सुकून.. वो घर अपना ना मिला
दर्द बयान करने की स्याही से तरबतर होकर तुम्हारे मुफलिसी भरे मिजाज को जिन्दा रखने के लिए शुक्रिया
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