कलम सदा सौदामिनी दमके आखर नाद मृदंग, रे 'मलंग' लेखनि हो जैसे उच्छल जलधि तरंग
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तुम यूं ही लिखते रहो और जिंदगी तमाम करो, न ये दिन ढलें न रात हो कहीं आवारा, फलक पे ठहर जाएं तेरे शब्द के मोती... यूं अल्फाजों का ऐहतराम करो
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ReplyDeleteतुम यूं ही लिखते रहो और जिंदगी तमाम करो, न ये दिन ढलें न रात हो कहीं आवारा, फलक पे ठहर जाएं तेरे शब्द के मोती... यूं अल्फाजों का ऐहतराम करो
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