Tuesday, 22 September 2015

कभी यूँ भी हमसे रूबरू कलाम करो
बैठो ठहर के पहलू में और शाम करो
मिलने दो धड़कने धड़कन से नजर नजरों से
उठा दो पलकें और शराबों को नाकाम करो...

2 comments:

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  2. तुम यूं ही लिखते रहो और जिंदगी तमाम करो, न ये दिन ढलें न रात हो कहीं आवारा, फलक पे ठहर जाएं तेरे शब्द के मोती... यूं अल्फाजों का ऐहतराम करो

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