जिंदगी मेरे सामने मुस्कुरा रही है
अपनी अल्हड़ अदा में आज वो इतरा रही है
जुल्फ काली घटना लब उसके आफताब हुए
वो उतरी बादलों से ख्वाहिशें जगा रही है
सोचता हूं उसके सपनों में अपने रंग भरूं
अपने होठों से जो मुझे गुनगुना रही है
उसकी आंखों में अपना अक्स नजर आता है
जिसकी सूरत मेरे दिल में उतरती जा रही है
क्या करूं किससे कहूं, कुछ समझ नहीं आता
मेरी ही आग मेरी रूह को झुलसा रही है
मैं वो पंछी जिसे पिंजरे में कैद रखा है
हवा जिसके परों से आज भी टकरा रही है
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