malang.rohitashwa
कलम सदा सौदामिनी दमके आखर नाद मृदंग, रे 'मलंग' लेखनि हो जैसे उच्छल जलधि तरंग
Wednesday, 12 March 2014
.... जनता चूल्हे भाड़
नेता पहुंचे द्वार पर और करन लगे मनुहार
हमका दे दो वोट और दो बनाय सरकार
घर-घर पहुंची बिजली-पानी,फैक्ट्री लागी चार
बरसे लागी लक्ष्मी... फिर ले आयो मोटर कार
हुआं-हुआं.. भौं-भौं भाषण का, लेकिन यह है सार
नेता जी संसद पहुंचेंगे और जनता चूल्हे भाड़
(मलंग)
हमका दे दो वोट और दो बनाय सरकार
घर-घर पहुंची बिजली-पानी,फैक्ट्री लागी चार
बरसे लागी लक्ष्मी... फिर ले आयो मोटर कार
हुआं-हुआं.. भौं-भौं भाषण का, लेकिन यह है सार
नेता जी संसद पहुंचेंगे और जनता चूल्हे भाड़
(मलंग)
शुरुआती
दिनों के सहकर्मी मंसूर भाई के कार्टून संकलन का पहला बाउंसर झेला.. जो
महसूस हुआ वो अपने अंदाज में बयां कर रहा हूं.. (मलंग)
बाउंसर आई बल्ला गिर गया, हुआ खिलाड़ी ढेर
आड़ी तिरछी रेखाओं में उलझे सारे 'शेर'
बब्बर शेर दहाड़े और जनता चिंघाड़े
सच्चाई की स्याही में रंगते वादे नारे
गांधी टोपी.. खद्दर कुर्ता आज बने कार्टून
सबकी खींची टांग जिन्होंने चूसा खून
नेता संत क्रिकेटर की है खूब उड़ाई खिल्ली
दूसरा 'बाउंसर' डालो भैय्या और बिखराओ गिल्ली
बाउंसर आई बल्ला गिर गया, हुआ खिलाड़ी ढेर
आड़ी तिरछी रेखाओं में उलझे सारे 'शेर'
बब्बर शेर दहाड़े और जनता चिंघाड़े
सच्चाई की स्याही में रंगते वादे नारे
गांधी टोपी.. खद्दर कुर्ता आज बने कार्टून
सबकी खींची टांग जिन्होंने चूसा खून
नेता संत क्रिकेटर की है खूब उड़ाई खिल्ली
दूसरा 'बाउंसर' डालो भैय्या और बिखराओ गिल्ली
Thursday, 6 March 2014
हवा जिसके परों से आज भी टकरा रही है
जिंदगी मेरे सामने मुस्कुरा रही है
अपनी अल्हड़ अदा में आज वो इतरा रही है
जुल्फ काली घटना लब उसके आफताब हुए
वो उतरी बादलों से ख्वाहिशें जगा रही है
सोचता हूं उसके सपनों में अपने रंग भरूं
अपने होठों से जो मुझे गुनगुना रही है
उसकी आंखों में अपना अक्स नजर आता है
जिसकी सूरत मेरे दिल में उतरती जा रही है
क्या करूं किससे कहूं, कुछ समझ नहीं आता
मेरी ही आग मेरी रूह को झुलसा रही है
मैं वो पंछी जिसे पिंजरे में कैद रखा है
हवा जिसके परों से आज भी टकरा रही है
Friday, 21 February 2014
आग से खेले गर आशिक़ तो फिर सजा क्या है
ए जिन्दगी तेरी रजा क्या है
मुश्किलों में निखरती हो तुम वजह क्या है
तेरा हर रंग नई जंग का पैगाम बना
ये हर कदम पे आजमाने की अदा क्या है
किसी को तख्त और किसी को गुलिस्तां मिला
मैं कांटों में मुस्कराऊं तो खता क्या है
तू बहकती है दहकती है शरारों की तरह
आग से खेले गर आशिक़ तो फिर सजा क्या है
ये मोहब्बत है बच्चों का कोई खेल नहीं
जान पर जब तलक न आए तो फिर मजा क्या है
अलसाई ख्वाहिशें अब ले रहीं अंगड़ाई है...
चलो 'मलंग' क्यों रुके हो अब माजरा क्या है
तू साजन मेरा सांवरिया..मीरा तेरी दीवानी है
(PHOTO CREDIT-monika-sharma / fineartamerica.com )
तू न जाने तू न माने .. मेरी तुझसे जुडी जिंदगानी है
तेरे अंग से अंग लगूँ न, तब तक ये अधूरी जवानी है
तू प्यासा भंवरा हरजाई .... काहे तुझसे आँख लड़ाई
दिन गुजरा बिरहा में तेरी अब रातें तेरी महकानी हैं
बहती हवा तू हाथ न आये आँचल छेड़े जुल्फ उड़ाये
तू साजन मेरा सांवरिया..मीरा तेरी दीवानी है
रे मलंग मोहे अंग बसा ले .. मेरे आँगन धुनी रमा ले
मैं तेरी जोगन बन जाऊं ,, अब तुझसे प्रीत निभानी है
तू न जाने तू न माने .. मेरी तुझसे जुडी जिंदगानी है
तेरे अंग से अंग लगूँ न, तब तक ये अधूरी जवानी है
तू प्यासा भंवरा हरजाई .... काहे तुझसे आँख लड़ाई
दिन गुजरा बिरहा में तेरी अब रातें तेरी महकानी हैं
बहती हवा तू हाथ न आये आँचल छेड़े जुल्फ उड़ाये
तू साजन मेरा सांवरिया..मीरा तेरी दीवानी है
रे मलंग मोहे अंग बसा ले .. मेरे आँगन धुनी रमा ले
मैं तेरी जोगन बन जाऊं ,, अब तुझसे प्रीत निभानी है
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