Thursday 14 July 2011

छलनी होते देश की हालत किस कीमत पर सुधरेगी

हवा में बारूद, जमीं पर लोथड़े, आँखों में गरम पानी है
लोकतंत्र की सूली चढ़ा फिर कोई हिन्दुस्तानी है
अभी आएगी आवाज ये हमला पाकिस्तानी है
अब हमारी सरकार बना दो इनको याद दिलानी नानी है

अगली सुबह फिर हम जिंदादिल कहलायेंगे
दिल में लेकर डर-दहशत रोजी रोटी को जायेंगे
साल महीने बीतेंगे मौसम आयेगा वोटिंग का
दारू-मुर्गे और वादों पर दोहरानी वही कहानी है

नेता जी गलियारे में पैरों पर गिरकर जायेंगे
वोट दे दो माई अब हम नया सवेरा लायेंगे
भोला और भुलक्कड़ रामू ठप्पा देकर आयेगा
अपना नेता आते ही बीपीएल कार्ड बनाएगा

वो दिन भी आ जायेगा जब बरसी लोग मनाएंगे
दहशत की बलि चढ़े किसी इंसा की याद दिलाएंगे
सूनी मांग लिए कोई फिर खून के आंसू रोएगी
सोचेगी अब कौन सुहागन अपना साजन खोएगी

कब तक लाशों पर सरकारों का सिंघासन चमकेगा
खाकी-खादी का मन किस दिन सच्चाई से दमकेगा
किस दिन बिटिया निर्भय होकर सड़कों से यूं गुजरेगी
छलनी होते देश की हालत किस कीमत पर सुधरेगी



(जुलाई २०११ में मुंबई ब्लास्ट पर मेरी पीड़ा )

3 comments:

  1. aapne phle hi likha tha ki khud hi se mulk sanwar de aisa aawam chahiye mujhe bhi lgta hai udhhar tabhi smbhav hai. apki peeda vajib hai.

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  2. Bhot khoob rohit bhai, blog ke naam ke anuroop he lekhni hai aapki..... bhot khoob
    sadhuvaad

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  3. सर, मैं आपकी पीडा के बारे में तो कुछ नहीं बोल सकता क्योंकि आपके शब्द उसे बयां करने में कोई कमी नहीं छोड रहे हैं और जहां तक मैं समझता हूं इस ब्लास्ट से खाकी—खादी दोनों को सबक मिलेगा।

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