कलम सदा सौदामिनी दमके आखर नाद मृदंग,
रे 'मलंग' लेखनि हो जैसे उच्छल जलधि तरंग
Tuesday, 10 September 2013
भगवान का बेटा मरता है, अल्लाह की बेटी रोती है
हिंसा, नफरत की लपटों में इंसान की बस्ती जलती है भगवान का बेटा मरता है अल्लाह की बेटी रोती है जिन चौबारों पर रंग उड़े अब खून की होली होती है जिस छत पर देखा चांद कभी वहां... अब कोई बेवा रोती है
No comments:
Post a Comment