मेरे शहर
कज़ा के
शोर में भी तू पुकारता है मुझे
मेरे शहर तू भीड़ में कहीं नजर आ जा
यहाँ फरेब की चमक है देखता हूँ जिसे
तू जुगनुओं सा सही आज की सहर आ जा
तमाम उम्र हकीकत की धूप में है कटी
ये रात आखिरी है ख्वाब सा मगर आ जा
मेरे शहर तू भीड़ में कहीं नजर आ जा
good one bhai
ReplyDeleteइसीलिए मैने दुनिया का साथ छोड़ दिया ये चिल्लती है खामोश हो है फिर हमसे ही सहारा मगती है .......कोई भी चीज़ तब तक हमसे दूर भागती है जब तक हम उसके पीछे भाते है ....
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