Tuesday 20 December 2011

मेरे शहर


कज़ा के  शोर में भी तू पुकारता है मुझे
मेरे शहर तू भीड़ में कहीं नजर आ जा

यहाँ फरेब की चमक है देखता हूँ जिसे
तू जुगनुओं सा सही आज की सहर आ जा

तमाम उम्र हकीकत की धूप में है कटी
ये रात आखिरी है ख्वाब सा मगर आ जा

मेरे शहर तू भीड़ में कहीं नजर आ जा

2 comments:

  1. इसीलिए मैने दुनिया का साथ छोड़ दिया ये चिल्लती है खामोश हो है फिर हमसे ही सहारा मगती है .......कोई भी चीज़ तब तक हमसे दूर भागती है जब तक हम उसके पीछे भाते है ....

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