Sunday 21 August 2011

प्रारंभ

नव प्रभात, नव किरण खिली.. उड़ पड़े विहग आकाश हैं
अब शूरवीर रण जीतेंगे.. ये अरिदल को भी आभास है
द्रढ प्रतिज्ञ उन्मत्त चाल.. झंकृत धरती आकाश हैं
ये रुकेंगे, थकेंगे,  डिगेंगे नहीं.. जब तक के अंतिम सांस है

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