malang.rohitashwa
कलम सदा सौदामिनी दमके आखर नाद मृदंग, रे 'मलंग' लेखनि हो जैसे उच्छल जलधि तरंग
Wednesday 6 March 2013
मुड़कर कहना, मिलते रहना
चुपके-चुपके गम को सहना
आंखे नम पर हंसते रहना
एक नहीं है मंजिल फिर भी
मुड़कर कहना, मिलते रहना
नींद अधूरे... ख्वाब अधूरे
ऐसी रातों का क्या कहना
सब मेरा दीवानापन है
फिर क्या खुद से लड़ते रहना
:)
1 comment:
dhananjay gautam
16 May 2013 at 09:08
kya baat hai bhai
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kya baat hai bhai
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