Friday, 13 April 2012

' है बदन जहाँ पे दफ़न मेरा, उस नींव को मेहराब दे '



नज़र से नज़र नवाज़ दे 
अब दीद का मेहताब दे 
सदियों से जो बेनूर हैं 
उन्हें नींद दे, कुछ ख्व़ाब दे 

मैं सफ़र में तन्हा उदास हूँ
मुझे हमसफ़र का ख़िताब दे
ये जो जिन्दगी ख़ामोश है 
इसे आज तू आवाज़ दे 

सीने में जिसको दफ़न करूँ
अपना कोई एक राज़ दे 
यूं सर्द सी साँसें पड़ीं  
अपने दहन से आग़ दे  

मैं मयकशी का शिकार हूँ
साकी मुझे अब आब दे 
है बदन जहाँ पे दफ़न मेरा
उस नींव को मेहराब दे